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मंगत कथन.. बुजुर्गों को फ्री तीर्थ यात्रा ताकि युवाओं को अपने दौर की कहानियां सुना आज की सरकार को खराब न बताएं

RNE Special

वरिष्ठ नागरिक से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसके पास समयाभाव नहीं होता तथा बहुत अनुभव होते हैं। इसके साथ ही वह इस गलतफहमी में भी रहता है कि यदि कोई उसके सिद्धान्तों को मानले तो उसका जीवन सफल हो जाये। हालांकि उसके अपने जीवन में ये सिद्धान्त उसके कुछ काम नहीं आये। यह जानते हुये उसके पास युवा जन फटकने की हिम्मत इसलिये नहीं करते क्योंकि एक बार यदि उसकी बातें शुरु हो गईं तो जल्दी से खत्म नहीं होंगी। वरिष्ठ नागरिक की भाषा में वर्णनात्मकता का गुण अत्यधिक होता है। वह भूतकाल की अच्छाइयों की जब ‘रनिंग कमैंट्री’ देना शुरु करता है तो वर्तमान में पहुँचकर उसे निकृष्ट सिद्ध करके ही दम लेता है। उसका ‘नॉन-स्टॉप’ वर्णन तब तक चालू रह सकता है जब तक बीच में कोई व्यवधान न आ जाये। उसे दूसरे की स्थिति से कुछ भी लेना-देना नहीं होता। आजकल विभिन्न प्रान्तों की सरकारें भी इन्हें खुश रखने के लिये इन्हें मुफ्त तीर्थ यात्रायें तक करवाती हैं (नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली का हज के लिये जाना।) ताकि इनका ध्यान बंटा रहे जिससे वे उनका जनाधार नष्ट करने में समय न गँवायें। सरकार के इस कृत्य से वरिष्ठ नागरिकों के घरवाले भी बड़े खुश हैं। इससे उन्हें भी कुछ दिन सुख के सांस नसीब हो जाते हैं। इन तीर्थ यात्राओं का एक प्रभाव यह भी देखा गया है कि वे अब सोचने लगे हैं कि उनके पिछले सारे पाप धुल चुके हैं। लौटकर वे यात्रा-विवरण सुना-सुना कर घरवालों और दूसरों का मनोरंजन (समय नष्ट) करते रहते हैं।

वरिष्ठ नागरिक दो तरह के होते हैं। सरकारी नौकरी से रिटायर पेंशन-याफ्ता तथा विना नौकरीवाले वरिष्ठ नागरिक में काफी अन्तर होता है। पेंशनयाफ्ता हेकड़ीचाज होता है। वह अपनी पत्नी और घरवालों पर अपनी पेंशन का रौब यदा-कदा गाँठता रहता है। सरकारी सेवाओं और राजनीति में वरिष्ठ होने के फायदे ही फायदे हैं। मैंने जब वरिष्ठ नागरिकों पर कुछ लिखने की सोची है तो क्यों न पहले आप को उसके फायदे गिनवाऊँ ! वरिष्ठ नागरिक होने का पहला फायदा तो यही है कि मैं अपनी आगामी पुस्तक का यही शीर्षक रखदूं तो मेरे विचार में अस्सी प्रतिशत पेंशनर बूढ़े यही सोचकर इस पुस्तक को अवश्य खरीदेंगे कि शायद यह उनके लिये कोई मार्गदर्शिका है। इसका पहला कारण तो यह है कि हम भारतीय लोग अपनी सरकार से फायदे लेने के लिये बड़े लालायित रहते हैं। कई लोगों की तो मान्यता है कि इस नश्वर संसार में आकर यदि किसी ने बैंक से ऋण लेकर यह राशि नहीं पचाई अथवा किसी अन्य तरीके से सरकारी पैसे को हजम नहीं किया तो उसका जन्म अकारथ गया। हम लोग मुफ्त का माल उड़ाने के बड़े शौकीन हैं। हमारी मान्यता है कि भगवान जब छप्पर फाड़ कर देता है तो उसका एक जरिया सरकारी भी होता है। कई लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि यदि आप ने वरिष्ठ नागरिक होते हुये भी सरकार की ओर से मिलने वाले फायदे नहीं लिये तो आप अव्वल दर्जे के मूर्ख हैं। जब गमले में गोभी उगाकर उसे आयकर विभाग को कृषि उत्पादन बतलाकर आयकर में लाखों रुपयों की छूट ली जा सकती है तो सरकारी लाभ लेना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। सरकार भी हमारी है, हमारे द्वारा ही बनाई गई है फिर अपना अधिकार क्यों छोड़ा जाये? किसके लिये छोड़ा जाये ? सरकार कौन सा आम नागरिक को निचोड़ने में कसर छोड़ती है !

वरिष्ठ नागरिक तो वैसे भी पूज्य होता है। आजकल हमारे देश के दानवीर लोगों ने नागरिकों के लिये वृद्धाश्रम जैसे आरामदायी भव्य भवन बनाकर उन्हें सौंप दिये हैं ताकि वे वहाँ रहकर अपनी साधना कर सकें। मोह-ममता को त्यागकर वे वहाँ पर रहते हुये अपने वानप्रस्थ और संन्यास की आयु में भजन करते हुये मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। ये लाभ अशक्त, वृद्ध अथवा वरिष्ठ लोग ही ले सकते हैं। इससे आप को नौजवान इसलिये धन्यवाद देंगे कि आपने उनको अपनी ओर से स्वतन्त्र छोड़कर उनकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया। नई पीढ़ी के बच्चे अपने दादा-दादी के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर बचपन में ही यह सीख जायेंगे कि उन्हें अपने माँ-बाप के बूढ़ा होने पर उनसे कैसा व्यवहार करना चाहिये। वरिष्ठ नागरिक होने पर आप यदि हजामत नहीं करवाते हैं तो श्वेत श्मश्रु और दाढ़ी में आप ऋषि तुल्य दिखलाई पड़ेंगे। भविष्य में आपके पोते-पोतियों अपने माँ-बाप को आदर्श मानकर उनकी मुक्ति के लिये उन्हें वृद्धाश्रम का मार्ग अवश्य दिखलायेंगे। यह सम्मान आपको बिना प्रयास किये ही प्राप्त हो जायेगा।

‘चन्द्र वदन मृगलोचनियाँ’ जब आपको ‘बाबा’ कह कहकर पुकारेंगी तो सहज ही आपको महाकवि केशवदास के दुःख की अनुभूति हो जायेगी कि सौन्दर्य के पूजक को जब कोई इस प्रकार सम्बोधित करता है तो उस पर क्या गुजरती है! इससे आप को भी गहन काव्यानुभूति होगी और आप श्रृंगारिक कवितायें रचने लगेंगे। वास्तविक श्रृंगारिक कविता की रचना कवि युवावस्था गुजरने के बाद अनुभव परिपक्व होने पर ही कर सकता है। आप जानते ही हैं कि दिनकरजी ने ‘उर्वशी’ की रचना संसद सदस्य बनने के बाद ढलती वय में ही की थी। इस कारण यदि लोग आपको ‘बासी कड़ी में उबाल आना’ ‘चढ़ी जवानी बूढ़े को’ ‘बूढ़े का दिमाग खराब हो गया’ आदि उपमायें देकर उपेक्षित या प्रताड़ित करना चाहें तो किसी की परवाह न करें। यह उनकी ईर्ष्या बोलती है। दिनकर की ‘उर्वशी’ की भी आलोचकों ने उस वक्त कम खिंचाई नहीं की किन्तु जब उस पर ज्ञानपीठ मिला तो उन्हीं आलोचकों को उस पर पुनर्विचार करना पड़ा। केशव के लिये आलोचक आज तक कहते ही हैं- बूढ़ा कितना रसिक था। वृद्धाश्रम में विद्युरों को तो फायदा ही फायदा है। वे अपनी हमउम्र किसी भी विधवा से इश्क लड़ा सकते हैं। इश्क के पेच लड़ जायें तो पुनः गृहस्थी बसाकर अपना जीवन आबाद कर सकते हैं।

आजकल प्रबुद्ध वर्ग घड़ी की सुइयों के साथ चलता-फिरता, सोता-जागता है। दफ्तर जाना है तो एक निश्चित समय पर उठना पड़ता है। एक निश्चित समय में सारे काम निपटाकर अपने कार्यस्थल पर पहुँचना पड़ता है किन्तु वरिष्ठ नागरिक ‘टाइम फ्री’ व्यक्ति होता है। उसे कहीं भी किसी काम की कोई जल्दबाजी नहीं होती। ऐसे में वह घरवालों के लिये बहुपयोगी हो जाता है। छोटे बच्चों को स्कूल छोड़ने के अतिरिक्त शाक-भाजी लाने और बिजली-पानी के बिल भरवाने तक का काम कर सकता है। वहाँ उसकी कोई पुरानी मित्र मिल जाये तो अपनी जवानी के दिन लौटा सकता है। उन्हें आपस में बातें करते देख किसी को सन्देह भी नहीं होगा। वरिष्ठ नागरिक हिसाब-किताच में इतना साफ होता है कि किसी के पास एक पैसा भी नहीं छोड़ता। उसे पैसे का मूल्य मालूम होता है। यदि यह कहूँ कि युवक एक पहाड़ी झरने के सामान बहुत शोर करने वाला तथा पहाड़ से उतरती नदी के समान चंचल होता है, जिसमें ठहराव नहीं होता तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। जबकि वृद्ध जन समुद्र के समान गहन-गंभीर और अनुभव से परिपक्व होता है। वृद्धजन चलते-फिरते विश्व कोश होते हैं। आप कभी उनसे उन के जमाने के विषय में मत पूछ बैठना। यदि पूछ लिया तो घड़ी मत देखना। इस बात का बुरा भी मत मानना कि उनके वक्त की फिल्में कितनी साफ सुथरी हुआ करती थीं। संगीत कितना कर्णप्रिय होता था। आजकल जबकि कला और संस्कृति का ह्रास हो चुका है। अपने जमाने को अच्छा बतलाकर उसकी प्रशंसा करना तथा नये जमाने की गिन-गिन कर बुराइयाँ बतलाना उनकी आदत में शुमार होता है।

कुछ वरिष्ठ नागरिक जन सेवा में भी लग जाते हैं। अस्पताल में मरीजों से बातें करने अथवा उनकी कुशल-क्षेम पूछने के साथ-साथ वे रेल गाड़ियों तथा बस स्टैंड आदि पर पानी पिलाते देखे जा सकते हैं क्भी उन्होंने सरकारी योजनाओं और जनता को पानी पिलाया था आज उन्हें प्यासों को पानी पिलाते देखकर सुखद अनुभव होता है। कुछ वरिष्ठ जन गौ-शालाओं तथा धर्मशालाओं में भी काम करते देखे गये हैं। वे यदि अपने कार्यकाल में घूसखोर अथवा दबंग रहे हैं तो यहाँ भी वे अपना जलवा दिखाने से नहीं चूकते।

घर में यदि कोई वरिष्ठ नागरिक है तो चौकीदार की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि थोड़ी सी आहट होने पर भी वह जाग जाता है। वरिष्ठ नागरिक के प्रति प्रत्येक व्यक्ति के दिल में सम्मान की भावना होनी चाहिये। वह यदि थोड़ी सी भी शालीनता दिखलाता है तो लोगों की उसके प्रति श्रद्धा बढ़ जाती है। यह बिल्कुल मुफ्त मिलती है। कई लोग बूढ़े होकर सनकी, शक्की और चिड़चिड़े हो जाते हैं इसलिये लोग उनसे दूर ही रहना पसन्द करते है किन्तु यदि उसमें कोई दुर्लभ गुण है तो उसकी डॉट भी सहन कर लेते हैं।

बुढ़ापा जीवन रूपी समुद्र-मंथन के बाद निकला हुआ वह हलाहल है जिसे पचाना बड़ा कठिन होता है। जो हँसकर पचा लेता है वह शिवत्व की ओर बढ़ने लगता है तथा अनुभव के रत्नों से संसार को लाभान्वित करता है। युवा पीढ़ी को कभी भी यह नहीं भूलना चाहिये कि वृद्धावस्था मानव जीवन का वह पड़ाव है जब व्यक्ति थोड़ा ठहर कर अपनी पूरी यात्रा का आकलन काता है। इस अवस्था को सभी प्राप्त होंगे यह सोचते हुये अस्ताचल की ओर जाने वाली उस पीढ़ी को संबल देना चाहिये। इसी में उनका और मानवता का हित है।